पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ १७९ ]


स्वप्न नितांत जाता न रहे और यहाँ तक कि सत्य का रूप क्षण भर के लिये भी छिपा न रह जाय ।



______
(२४) सुख का मार्ग।

आज मैं आपको वेदों की एक कथा सुनाता हूँ। वेद हिंदुओं के धर्म-ग्रंथ हैं और उनमें प्राचीन साहित्य का संग्रह है। वेदों के अंतिम भाग का नाम वेदांत है। वेदांत कहते हैं वेद के अंत को। इसमें वेदों के भीतर आए हुए विचार हैं और विशेष कर उसमें दर्शन शास्त्र की बातें हैं जिनके साथ उन विचारों का संबंध है। वह बहुत प्राचीन संस्कृत में है और आप इसे स्मरण रखिए कि वह सहस्रों वर्ष का लिखा हुआ है। एक मनुष्य ने कोई यज्ञ करने की इच्छा की। अनेक प्रकार के यज्ञ होते हैं। यज्ञों में वेदियाँ बनती हैं, उनमें मंत्रपूर्वक आहुतियाँ दी जाती हैं और सामगान इत्यादि होते हैं। फिर यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को दक्षिणा और दीनों को दान दिया जाता है। भिन्न भिन्न यज्ञों में भिन्न भिन्न प्रकार की दक्षिणा दी जाती है। एक यज्ञ होता था जिसमें सर्वस्व दक्षिणा देनी पड़ती थी। वह मनुष्य धनी तो था, पर था कंजूस और सबसे कठिन यज्ञ करके यश लेना चाहता था। जब उसने वह यज्ञ किया, तब सब कुछ देने की जगह उसने लँगड़ी-लूली,कानी खोड़ी बूढ़ी गौएँ जिनसे की कभी आशा न थी, दक्षिणा में दी। उसके एक लड़का था।