पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१९०

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दूसरा श्रेय। इन्हीं दोनों को मनुष्य ग्रहण करते हैं। इनमें जो ज्ञानी है, वह श्रेय के मार्ग को ग्रहण करता है और जो मूर्ख है, वह प्रेय को ग्रहण करता है। नचिकेता, मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूँ कि तुमने लोभ नहीं किया। मैंने तुम्हें प्रेय मार्ग ग्रहण करने के लिये अनेक लालच दिखलाए, पर तुमने उन सबको त्याग दिया। तुम यह जानते हो कि ज्ञान सुख-भोग से कहीं श्रेष्ठ है।”

“तुमको यह समझना चाहिए कि जो मनुष्य अज्ञान और विषयभोग में पड़ा रहता है, उसमें और पशु में भेद नहीं है। फिर भी कितने ऐसे हैं जो अज्ञान में डूबे रहते हैं और घमंड में चूर हैं, अपने को बड़ा ज्ञानी मानते हैं। वे जैसे अंधा अंधे को टेकाता है, अनेक टेढ़े मार्गों में होकर फिरा करते हैं। हे नचि- केता, जो अज्ञानी बालकों के समान मिट्टी के खिलौने में फँसे रहते हैं, उनके हृदय में सत्य कभी प्रकाशित नहीं होता। वे न तो इस लोक को न परलोक को मानते हैं। वे अपने और पराए दोनों को नहीं मानते और बार बार मेरे वश में पड़ा करते हैं। कितनों ने सुना ही नहीं है, कितनों ने सुना तो है पर समझा नहीं है। कारण यह है कि इसका कहनेवाला भी अद्भुत ही चाहिए और समझनेवाला भी अद्भुत ही होना चाहिए। यदि वक्ता कुशल नहीं है तो इसे कोई सैंकड़ों बार कहे और सैंकड़ों बार समझे, पर फिर भी सत्य का प्रकाश आत्मा में नहीं होता। हे नचिकेता, व्यर्थ के तर्क से अपने मनको