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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१९१

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चलायमान् मत करो। यह सत्य उसी अंतःकरण में प्रकाश मान होता है जो अत्यंत शुद्ध है। जिसे बिना कठिनाई के देख नहीं सकते, जो गुप्त है, जो अंतःकरण की गुहा में प्रविष्ट है, जिसे आत्मा को आँख से देखने पर सुख दुःख जाते रहते हैं, उस पुरातन पुरुष को इन बाह्य आँखों से नहीं देख सकते। जो इस सत्व को जानता है, उसको सारी कामनाएँ जाती रहती हैं, दिव्य ज्ञान उत्पन्न हो जाता है और वह शान्ति पाता है। नचिकेता, यही शान्ति का मार्ग है। वही धर्म से परे, अधर्म से परे, कर्तव्य और अकर्तव्य से परे, भूत और भविष्य से परे है, वही इसे जानता है जो जानता है। जिसे सब वेद ढूँढ़ते हैं, जिसके लिये सब तपस्वी तप करते हैं, में उसका नाम तुम्हें बतलाता हूँ। वह ओ३म् है। यही ओ३म् ब्रह्म है, यही अमर है। जो इसके तत्व को जानता है, वह जो इच्छा करता है, वहीं होता है। हे नचिकेता, जिसके विषय में तुम पूछते हो, वह न कभी उत्पन्न हुआ है, न मरता है। वह अज, नित्य,शाश्वत और पुराण है। शरीर के नष्ट होने से वह नष्ट नहीं होता। जो यह समझता है कि मैं मारता हूँ, जो यह समझता है कि मैं मारा जाता हूँ, दोनों नहीं जानते। न वह मारता है, न वह मारा जाता है। वह अणु से भी अति अणु और महा से भी महा है। सब का ईश्वर सबके हृदय की गुहा में निहित है। जो धूतपाप है, वह उसे उसी भगवान् की दया से उसकी सारी महिमाओं में देखता है (हम देखते हैं कि ईश्वर के साक्षात्कार में प्रधान