पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१९२

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कारण ईश्वर की कृपा है)। बैठा हुआ वह दूर जाता है, लेटा हुआ वह सर्वत्र पहुँचता है, सिवाय शुद्ध और सूक्ष्म विचार- वाले पुरुष के कौन उस ब्रह्म के जानने के योग्य है जिसमें सारे विरुद्ध गुण एकत्र हैं? उसके शरीर नहीं है, पर वह शरीर में रहता है; अस्पृष्ट है, पर सबसे स्पृष्ट है, सर्वव्यापी है। ऐसे आत्मा को इस प्रकार जानकर ऋषियों के दुःख छूट जाते हैं। आत्मा वेदों के पढ़ने से नहीं जाना जाता, न प्रज्ञा से न विद्या से जाना जाता है। आत्मा जिसे चाहता है, वही उसे जान पाता है; उसके सामने वह अपनी महिमा प्रकट करता है। जो निरंतर पाप करता रहता है, जिसकी आत्मा शांत नहीं है, जो सदा चंचल और अशांत है, वह उस आत्मा को नहीं जान सकता, वह उसे नहीं साक्षात् कर सकता जो अंतः- करण की गुहा में प्रविष्ट है। हे नचिकेता, यह शरीर रथ है, इंद्रियाँ घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथी और आत्मा सवार है। जब आत्मा सवार सारथी बुद्धि के साथ और बुद्धि मन- रूपी लगाम के साथ और मन इंद्रिय-रूपी घोड़े के साथ संयुक्त रहता है, तब उसे भोक्ता कहते हैं। तभी वह देखता है, कर्म करता है। जिसका मन उसके वश में नहीं है और जिसे विवेक नहीं है, उसकी इंद्रियाँ वश में वैसे ही नहीं हैं जैसे उद्धत घोड़े सारथी के वश में नहीं रहते। पर जो विवेकवान् होता है, जिसका मन उसके वश में होता है, उसकी इंद्रियाँ वैसे ही वश में रहती हैं जैसे सुशिक्षित घोड़े सारथी के वश में रहते