हममें भी है। सिवाय उसके आभास के और हो क्या सकता
है। वह शरीर में है; यह उसकी ज्योति है, जिससे हम प्रकाश
को देखते हैं। चंद्रमा सबका मधु है; सब प्राणी चंद्रमा के मधु
हैं, पर वह स्वयंप्रकाश अविनाशी जो उस पुरुष की आत्मा है,
वह मनं रूप से व्यक्त हो रहा है। विद्युत् सवको मधु है, सब
विद्युत् के मधु हैं। पर वह स्वयंप्रकाश और अविनाशी विद्युत्
की भी आत्मा है। वही हम में है; ब्रह्म है। मनुष्य पशुओं
का मधु है और पशु मनुष्य के मधु हैं। पर जो मनुष्य की
आत्मा है, वही पशु की आत्मा है। यही आत्मा सब प्राणियों
का राजा है।” ये विचार मनुष्य के बड़े काम के हैं; ये निद-
ध्यासन के लिये ध्यान करने के लिये हैं। उदाहरण के लिये
मान लीजिए कि हम पृथ्वी पर निदध्यासन करते हैं। पृथ्वी
पर विचार कीजिए और साथ ही इसे भी जानिए कि हम वह
हैं जो पृथ्वी में है; दोनों एक ही हैं। शरीर को पृथ्वी समझिए
और आत्मा को वह आत्मा जानिए जो उसमें है। वायु को वह
आत्मा जानिए जो वायु में है और वही मुझमें है। सब एक
ही हैं, केवल भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त हो रहे हैं।