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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२१५

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बना लिया। अब उसे अपने खोए हुए स्वभाव को प्राप्त करना है। कुछ लोग इन बातों को रुपक, आख्यायिका और सांके- तिक बातें बताते हैं। पर जब हम इन बातों की छानबीन करते हैं, तब हमें जान पड़ता है कि उनका अर्थ यही है कि मनुष्य की आत्मा स्वरूप से शुद्ध है और मनुष्य को अपनी वास्तविक शुद्धि को प्राप्त करना है। पर उसकी प्राप्ति हो तो कैसे हो? ईश्वर वा परमात्मा के जानने से। जैसा कि इब्रानी बाइबिल में लिखा है कि “कोई ईश्वर को नहीं देख सकता, पर उसके पुत्र के द्वारा।” इसका अर्थ क्या है? यही कि ईश्वर का देखना मनुष्य जीवन का उद्देश है। पुत्रता तभी उत्पन्न होगी जब हम अपने पिता के साथ एकीभूत हो जायँगे। स्मरण रखो कि मनुष्य ने अपनी पवित्रता अपने कर्मों से खोई है। यदि हमें दुःख होता है तो उसके कारण हमारे कर्म ही हैं; ईश्वर का इसमें दोष नहीं है। इसके साथ घनिष्टता से संबंध रखनेवाला विश्वव्यापी पुनर्जन्म का विचार भी था; पर उसे यूरोपियनों ने छिन्न भिन्न कर डाला।

आप लोगों में कितनों ने इस सिद्धांत को सुना होगा और भूल गए होंगे। पुनर्जन्म का सिद्धांता आत्मा की नित्यता के सिद्धांत के साथ ही साथ चलता है। जिसका अंत है, वह अनादि नहीं हो सकता; जिसका आदि है, वह अनंत हो नहीं सकता। हम ऐसी असंभव बात को जैसी मनुष्य की आत्मा के आरंभ की बात है, मान नहीं सकते। पुनर्जन्म के सिद्धांत से