पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२४

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ही रह जायगा। वही धर्म मनुष्य के लिये उपकारी है जो सदा सबकी सहायता करने के लिये उद्यत रहे; चाहे वह दासत्व की दशा में हो या स्वतंत्रता में; अधोगति से उच्च गति तक सर्वत्र सभी दशा में समान रूप से उसका सहायक बना रहे। इसको वेदांत का तत्व कहो वा धर्म का आदर्श कहो, अथवा जो मन भावे सो कहो, इसकी सार्थकता तभी है जब यह इस बड़े काम को पूरा कर सके।

अपने ऊपर विश्वास रखने का आदर्श हमारे लिये बड़े काम का है। यदि अपने ऊपर विश्वास रखने की शिक्षा अधिक ध्यानपूर्वक दी जाती और उस पर बरता जाता तो मुझे विश्वास है कि हमारी बहुत सी बुराइयाँ और आपत्तियाँ दूर हो गई होतीं। मनुष्य जाति के इतिहास में यदि कोई शक्ति बड़े लोगों के जीवन में सबसे अधिक उत्तेजना देनेवाली हुई है तो वह धर्म की शक्ति है। वे इस ज्ञान को लेकर उत्पन्न हुए थे कि हम बड़े होंगे और इसी लिये वे बड़े हुए। मनुष्य कितना ही पतित क्यों न हो जाय, पर एक समय आवेगा कि वह सहसा ऊपर को उठेगा और अपने ऊपर विश्वास रखना सीखेगा। पर यह सबसे उत्तम बात है और इसीमें हमारी भलाई है कि हम उसे पहले ही से सीखें। इसकी क्या आवश्यकता है कि हम अपने ऊपर विश्वास रखना सीखने के लिये इतना अनुभव करें। हम देखते हैं कि मनुष्यों में जो अंतर है, वह अपने ऊपर विण्यास होने या न होने के कारण ही है। अपने ऊपर विश्वास