पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२५१

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स्थूल भूत देख पड़ते हैं जिनका हम अंपनी इंद्रियों से साक्षात् करते हैं। फिर सूक्ष्म भूत हैं जिनका संयोग आँख, कान, नाक आदि से होता है। आकाश के कंप आँखों को स्पर्श करते हैं। हम उन्हें देख नहीं सकते; पर यह हम जानते हैं कि प्रकाश दिखाई पड़ने के पहले ही हमारी आँख में कंप का स्पर्श होता है।

यह आँख है, पर आँख नहीं देखती। मस्तिष्कगत चक्षु इंद्रिय के तंतु को काट दीजिए, सामने के पदार्थों का प्रतिबिंब आँख की पुतली पर पड़ेगा, पर वे सुझाई न पड़ेंगे। आँख गोलक मात्र है। चक्षु इंद्रिय मस्तिष्क में है, जहाँ चक्षु तंतु लगा है। इसी प्रकार नाक है; उसके भीतर या परे घ्राणेंद्रिय है। ऊपर इंद्रियों के बाहरी गोलक मात्र हैं। यही इंद्रियाँ प्रत्यक्ष ज्ञान के मुख्य साधन और आधार हैं।

यह आवश्यक है कि मन इंद्रियों से संयुक्त रहे। यह नित्य के अनुभव को बात है कि जब हम पढ़ने में लगे रहते हैं, तब हमें घड़ी का बजना नहीं सुनाई पड़ता। कान तो था और शब्द मस्तिष्क में पहुँचा भी, पर फिर भी हमने सुना क्यों नहीं? कारण यह था कि मन श्रोरेंद्रिय से संयुक्त न था।

प्रत्येक इंद्रिय-गोलक की इंद्रियाँ अलग अलग हैं। क्योंकि यदि एक ही इंद्रिय से सबका काम चलता तो जब मन का उससे संयोग होता, तब सब इंद्रियाँ अपना अपना काम देतीं। पर ऐसा नहीं है। हम देखते हैं कि घड़ी बजी और हमने सुना