वह शुद्ध प्राण रहता है, तब वह आकाश में रहता है; जब वह विकार प्राप्त होकर शक्तियों का रूप धारण करता है जैसे गुरुत्व, आकर्षण आदि, तब वह द्रव्य में रहता है। द्रव्य से पृथक् शक्ति वा शक्ति-रहित द्रव्य कभी आपके देखने में न आया होगा। जिसे हम शक्ति और द्रव्य कहते हैं, वे हैं क्या? इसी आकाश और प्राण की अभिव्यक्ति मात्र ही तो हैं। प्राण को जीवन वा जीवन-शक्ति कहते हैं। पर प्राण शब्द को केवल प्राणी वा मनुष्य के जीवन ही तक के अर्थों में परिमितन न करना चाहिए और न उसे भ्रमवश आत्मा वा जीवात्मा ही समझ लेना चाहिए। इस प्रकार यह काम होता रहता है। सृष्टि का न आदि है और न अंत; यह निरंतर होती ही रहती है।
सांख्ययोग के विद्वानों को एक और बात है अर्थात् स्थूल पदार्थ सूक्ष्म के परिणाम हैं। जो स्थूल है, वह सूक्ष्म अंशों से बना है। इन सूक्ष्म अंशों को तन्मात्रा कहते हैं। मैं एक फल सूँँघता हूँ। सूँँघते समय किसी वस्तु का नाक से छू जाना आवश्यक है। फल सामने है। मैं देखता हूँ, वह मेरी नाक में नहीं घुसता। जो कुछ फल से मेरी नाक तक पहुँचता है, उसे तन्मात्रा कहते हैं। वह फूल के अत्यंत सूक्ष्म अणु हैं। इसी प्रकार ताप, तेज आदि की भी तन्मात्राएँ हैं। ये तन्मात्राएँ परमाणु में विभक्त हो सकती हैं। भिन्न भिन्न दार्शनिकों के भिन्न भिन्न मत हैं और वे निरे मत ही हैं। हमें इसी से काम है कि स्थूल पदार्थ सूक्ष्माति सूक्ष्म पदार्थों से बने हैं। पहले हमें