पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२६३

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आँख से देखते, कान से सुनते, नाक से सूँँघते, जीभ से चखते और हाथों से छूते हैं। यही मिलकर स्थूल होकर अंत को विश्व का रूप धारण कर लेते हैं। सांख्यदर्शन के अनुसार यही विश्व-विधान की परिक्रिया है। जो प्रकृति में है, वही सूक्ष्म विश्व में है। एक मनुष्य को ले लीजिए। उसमें पहले अव्यक्त है; वही प्राकृतिक पदार्थ उसमें महत् का रूप धारण कर लेता है। फिर महत् अहंकार हो जाता है; फिर इंद्रियाँ; यही सूक्ष्म अणु मिलकर शरीर के कारण होते हैं। मैं इसे और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। यही सांख्य का मूल सिद्धांत है। मैं इसे अच्छी तरह समझा देना चाहता हूँ, कारण यह है कि यही संसार भर के दर्शनों का आधार है। संसार में कोई दर्शन ऐसा नहीं है जिसने कुछ न कुछ कपिल से न लिया हो। पैथा- गोरस भारतवर्ष में आया था और उसने इस दर्शन का अध्य- यन किया था। वही यूनान के दर्शन का आरंभ वा मूल था। इसके पीछे सिकंदरिया के दर्शन का आरंभ हुआ। उसके पीछे विज्ञानवाद की उत्पत्ति हुई। दर्शन के दो भाग हो गए। एक युरोप और सिकंदरिया को गया; दूसरा भारत में रह गया जिस से व्यास के दर्शन का विकास हुआ। संसार में कपिल का सांख्यदर्शन सबसे आदिम और युक्तियुक्त शास्त्र है। सारे अध्यात्मवादियों को भगवान् कपिल को नमस्कार करना चाहिए। मैं आपसे यही कहता हूँ कि हमें उस दर्शन शास्त्र के आदि आचार्य्य की बातें सुननी चाहिएँ। श्रुति में उस