सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ २६३ ]

यह व्यायाम है, प्राणायाम नहीं है। प्राण जीवन की शक्ति है जो सारे शरीर में काम करता है और उसके अंग प्रत्यंग में, जिसे मन वा आभ्यंतर अंग कहते हैं, काम करता है। यहाँ तक अंच्छा ही है। सांख्य के विचार बहुत ठीक और यथार्थ हैं। पर फिर भी यह संसार में सबसे प्राचीन युक्तियुक्त विचार हैं। जहाँ कहीं कोई दर्शन वा युक्तियुक्त विचार है, उसमें कुछ न कुछ सांख्य की सहायता अवश्य ली गई है। कपिल का उपकार उन पर अवश्य है। फीसागोरस ने भारत में इस दर्शन का अध्ययन किया और यूनान में जाकर उसकी शिक्षा दी। इसके बाद प्लेटो ने इसकी एक झलक पाई और विज्ञान- वादी इसे सिकंदरिया ले गए और वहाँ इसकी शिक्षा दी। वहीं से वह युरोप में आया। अतः जहाँ जहाँ मनोविज्ञान वा दर्शन हैं, उन सबके प्रधान उत्पादक यही महात्मा कपिल हैं। यहाँ तक तो उनका दर्शन विलक्षण ही है; पर हमें अनेक बातों में उससे विरोध है जो हम आगे चलकर बतलावेंगे। हम देखते हैं कि कपिल के विचारों का आधार विकाश है। कपिल एक से दूसरे की उत्पत्ति या विकाश बतलाते हैं। उनके ‘कारण गुण- पूर्वक कार्य्य गुणोद्देशः’ सूत्र की इस बात से कि कारण ही दूसरा रूप धारण करके कार्य्य होता है और इससे कि सारे विश्व का विकाश होता जाता है, यह स्पष्ट प्रकट है। हम मिट्टी देखते हैं। उसी के विकार का नाम घट है। इसके अतिरिक्त कार्य्य हमें कोई भाव ही नहीं समझ में आता। अतः यह