पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ २६७ ]

चेतनता प्रकृति का गुण है, वह प्रकृति से आती है। वेदांत यह भी प्रकट करता है कि जिसे चेतनता कहते हैं, वह संयोगज है। हमें अपने प्रत्यक्ष की परीक्षा करनी चाहिए। मैं काले तख्ते को देखता हूँ। ज्ञान कैसे होता है? जिसे जर्मन दार्शनिक काले तख्ते का “मुख्य पदार्थ” कहते हैं, वह अज्ञात है; हम उसे जान नहीं सकते। मान लीजिए कि स्याह तखा 'क' है। यही 'क' हमारे मन पर टकराता है और मन उससे टकराता है। मन एक सरोवर के समान है। उस सरोवर में एक कंकड़ी फेंको और लहर उलटकर कंकड़ी से टक्कर खायगी। यह लहर जो टक्कर खाती है, कंकड़ी नहीं है; वह है लहर ही। स्याह तखा 'क' कंकड़ी के समान है जो हमारे मन में टकराता है। मन उसी पर टकराता है, अपनी लहर डालता है। इसी को हम स्याह तखा कहते हैं। मैं आपको देखता हूँ। आप सचमुच अज्ञात और अज्ञेय हैं। आप 'क' हैं और आप मेरे मन पर टकराते हैं और मेरा मन आपके ऊपर लहर फेंकता है। वह आपसे टक्कर खाता है और वही लहर है जिससे मैं अमुक को जानता हूँ। प्रत्यक्ष में दो पदार्थ हैं। एक बाहर से आता है, एक भीतर से। इन्हीं दोनों के संयोग को अर्थात् क+मन को हम विश्व समझते हैं। सारा ज्ञान इसी प्रतिक्रिया का फल है। व्हेल वा तिमि के संबंध में यह निश्चय किया जा चुका है कि वह कितनी बार पूँछ पटकता है, उसके मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है और उसे दुःख होता है। ऐसी