जायगी। यही सत्य पवित्रता है, यही एकता है। जिसे एकता संपादन हो वह सत्य है। प्रेम सत्य है और घृणा मिथ्या है। कारण यही है कि घृणा से भेद बढ़ता है। यह घृणा ही है जो मनुष्य मनुष्य में भेद कराती है, अतः यह मिथ्या है। यह वियोजक शक्ति है, यह भेद उत्पन्न करनेवाली और नाश करने- वाली है।
प्रेम सबको मिलाता और प्रेम उस एकता का संपादन करता है। आप उससे एकता को प्राप्त होते हैं। माता संतान से, घर नगर से मिलते मिलते सारे संसार के प्राणी मिलकर एक हो जाते हैं। क्योंकि प्रेम ही सत्ता है। वह साक्षात् ईश्वर है। जो कुछ है, सब उसी एक प्रेम की अभिव्यंजना है। भेद केवल मात्रा का है। पर यह सब कुछ उसी प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र है। अतः हमें अपने सब कर्मों में यह विचार रखना चाहिए कि वह एकता का संपादन करता है वा नानात्व का। यदि नानात्व का संपादन होता है, तो हमें उसे परित्याग कर देना चाहिए; और यदि एकत्व का संपादन होता है तो वह निश्चय है कि अच्छा है। यही दशा हमारे विचारों की है। हमें इसका निश्चय कर लेना चाहिए कि उसका परिणाम भेद वा नानात्व है अथवा एकता है; और आत्मा आत्मा से मिलकर एक हो जाते हैं। यदि उसका परिणाम एकता है तो हमें उसे रखना चाहिए, अन्यथा उसे निकालकर दूर कर देना चाहिए। वह पाप है।