पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२९

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सब नानात्व उसी एक की अभिव्यक्ति मात्र है। वही एक नाना रूपों में अभिव्यक्त हो रहा है। प्रकृति हो, जीव हो, मन हो, बुद्धि हो वा और कुछ हो, सब उसी के विग्रह मात्र हैं। यह वही एक है जो अनेक रूपों में व्यक्त हो रहा है। अतः हमारे लिये सबसे पहला उपाय यह है कि हम अपने को और औरों को सत्य की शिक्षा दें।

संसार को इस आदर्श के शब्द से भर दो और पक्षपात का नाश कर दो। उन लोगों से जो निर्बल हैं, यह कहो और कहते जाओ कि आप शुद्ध हैं। जागो और उठो; हे महानुभाव यह सोना आपके लिये उपयुक्त नहीं है। जागो और उठो, ऐसे पड़े रहना आप के योग्य नहीं है। इसे ध्यान में न लावें कि आप निर्बल और दुःखी हैं। हे सर्वशक्तिमान् उठो, और अपने स्वरूप को व्यक्त करो। यह आपको उचित नहीं है कि आप अपने को पापी समझें। यह आपके योग्य नहीं है कि अपने को निर्बल जानें। यह आप संसार भर से कहिए, अपने से कहिए और देखिए तो इसका क्या उचित फल होता है। देखिए कि बिजली की भाँति सब व्यक्त हो जाते हैं, सब की दशा फिर जाती है। इसे मनुष्य मात्र से कहिए और उन्हें उनकी शक्ति दिखला दीजिए। तभी हमें इसका ज्ञान होगा कि नित्य के कामों में इसका व्यवहार कैसे हो सकता है।

विवेकवान होकर अपने जीवन के प्रत्येक क्षण, बात बात में सत्य असत्य का विवेक करने से हमें सत्य की कसौटी मिल