पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३१३

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दीजिए? यह सब धर्म की मूर्खता है! जिनका उन पर विश्वास है, उन्हें ईश्वर और आत्मा का सच्चा बोध ही नहीं है। मेरे गुरु- देव कहा करते थे कि गिद्ध ऊपर उड़ता चला जाता है, यहाँ तक कि वह बिंदु क समान हो जाता है; पर उसकी आँखें पृथ्वी पर पड़े हुए सड़े मुर्दे पर ही रहती हैं। अंततोगत्वा आपके विचारों का फल क्या है? सड़क पर झाडू देना और अधिक रोटी और कपड़े का होना? रोटी और कपड़े की चिंता किसे है? करोड़ों प्रतिक्षण आते जाते रहते हैं। चिंता कौन करता है? इस लोक के सुख और परिवर्तनों के लिये प्राण क्यों देते हो? साहस हो तो उसके बाहर पैर बढ़ाओ। सच्चिदानन्दोऽहं। सोऽहम् सोऽहम्।


――:०:――
एक ही अनेक भासमान है।
(न्यूयार्क सन् १८९६)

वैराग्य से ही भिन्न भिन्न योगों का भेद है। कर्मी कर्म के फल को त्यागता है। भक्त सब क्षुद्र प्रेमों को सर्वशक्तिमान् व्यापक प्रेम के लिये त्यागता है। योगी अपने अनुभवों को त्यागता है; क्योंकि योग का सिद्धांत है कि प्रकृति यद्यपि पुरुष के अनुभव के लिये है और अंत में उसे यह ज्ञान करा देती है कि वह प्रकृति नहीं है, पर सदा प्रकृति से वह अलग बना रहता है। ज्ञानी सब कुछ त्याग देता है, क्योंकि उसके दर्शन का