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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३२३

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है, जो उस एक जीवन को विश्व में तैरता हुआ देखता है, जो उसका साक्षात्कार करता है, जिसमें विकार नहीं, उसी के लिये शाश्वत सुख है, दूसरे के लिये नहीं। उसी एक को साक्षात् करना चाहिए। दूसरा प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि उसका साक्षात् कैसे किया जाय? यह स्वप्न टूटेगा कैसे? हम इस निद्रा से कि हम मनुष्य, स्त्री, पुरुष आदि हैं, जागें कैसे? हम विश्व की अनंत सत्ता हैं और क्षुद्र रूप धारण किए हुए हैं; किसी की मीठी वा कड़ुई बातों के वश में पड़कर पुरुष, स्त्री आदि बने हैं। कैसा भयानक राग है, कैसी भयानक दासता है! मैं जो मुख दुःख से अलग हूँ, जिसका प्रतिबिंब सारा विश्व है, जिसके प्रकाश के एक एक कण सूर्य्य, चंद्र और तारे हैं, वही मैं इस प्रकार दारुण दासता में पड़ा हूँ। आप मेरे शरीर में चुटकी काटते हैं तो मुझे पीड़ा होती है। आप मीठी बातें कहते हैं तो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ। मेरी दशा तो देखिए-शरीर का दास बना हूँ, मन का दास बना हूँ, संसार का दास हूँ, अच्छे बुरे शब्दों का दास हूँ, इंद्रियों का दास, सुख का दास, जीवन मरण का दास, एक एक करके सबका दास हो रहा हूँ। इस दासत्व को तोड़ना चाहिए। पर वह टूटे कैसे? अद्वैत ज्ञान की प्राप्ति का क्रम यह है ‘आत्मा वा अरे श्रोतव्य मन्तव्य निदध्यासितव्य’ सत्य को पहले सुनना चाहिए, फिर मनन करना चाहिए, फिर निदध्याँँसन करना चाहिए। अहं ब्रह्म का निरंतर चिंतन करो, सब विचारों