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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/५८

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से संसार में कभी बुराई फैलती ही नहीं; मानों उससे सांप्र- दायिक पक्षपात उत्पन्न होकर रक्त के प्रवाह से संसार को निम- जित नहीं करता और लोगों से एक दूसरे की वोटी बोटी नहीं कराता। ‘मेरा ईश्वर सबसे बड़ा ईश्वर है। इसका निबटेरा लड़- कर कर लो’। यही संसार में द्वैतवाद का निचोड़ है। दिन के प्रकाश में आओ, तंग गली से बाहर निकलो। कैसे अपरिमित आत्मा तंग गली में पड़ी पड़ी नष्ट होना चाहेगी? विश्व के आलोक में आओ। संसार में सभी आपके हैं। हाथ पसारो और प्रेम से मिलो। यदि तुममें इसके करने का कभी ज्ञान उत्पन्न हो तो बस समझ लो कि तुमने ईश्वर को जान लिया।

आप बुद्धदेव के उस उपदेश की बात का स्मरण कीजिए कि कैसे भगवान् बुद्धदेव ने प्रेम का भाव दक्षिण, उत्तर, पूर्व, पश्चिम, ऊपर, नीचे सब ओर पहुँचा दिया और सारा विश्व महान् और अनंत प्रेम से परिपूर्ण हो गया। जब आपमें वह भाव आ जायगा, तब आप सच्चे महापुरुष हो जायँगे। सारा विश्व एक ही पुरुष है। छोटी बातों को छोड़ दो। अपरिमित के लिये परि- मित को छोड़ो, अनंत सुख के लिये छोटे सुखों को तिलांजलि दे दो। यह सब आपका है। अपौरुषेय में पौरुषेय भरा है; अतः ईश्वर भी पुरुषविध और अपुरुषविध वा पौरुषेय और अपौरु- षेय दोनों साथ ही साथ है। और मनुष्य, अनंत और अपुरुष- विध मनुष्य, पुरुष के रूप में अपने को व्यक्त कर रहा है। हमने, जो अप्रमेय हैं, अपने को मानो छोटे अंशों के रूप में परिमित