सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ ५९ ]


मिथ्या नहीं हैं। यह बात स्मरण रखने योग्य है कि ईश्वर को पूजा की रीति, प्रतीकादि चाहे जितनी भोंडी और असभ्यो- चित क्यों न हो, मिथ्या नहीं है, भूल की बात नहीं है। वे सत्य से सत्य की ओर जाने के मार्ग हैं, नीचे से ऊँचे चढ़ने की सीढ़ियाँ हैं। अंधकार से प्रकाश में जाने की राहें हैं। कम भला ही बुरा है; कम शुद्ध ही अशुद्ध है। हमें इसका सदा ध्यान रखना चाहिए कि हम दूसरों को प्रेम की दृष्टि से देखें; यह जानते हुए उन्हें सहानुभूति की दृष्टि से देखें कि वे सब उसी मार्ग को जा रहे हैं जिससे हम जाते हैं और गए हैं। यदि आप मुक्त हैं तो आप इसे निश्चय समझें कि सब कभी न कभी मुक्त होंगे। यदि आप मुक्त हैं तो आप अशुद्ध कैसे हो सकते हैं? क्योंकि जो भीतर है वही बाहर है। हमें अशुद्धि तब तक न दिखाई पड़ेगी जब तक हमारे भीतर अशुद्धि न हो। वेदांत का यही कर्मकांड है। हम सबको अपने जीवन में इसके अनुष्ठान करने का प्रयत्न करना चाहिए। हमारा सारा जन्म इसी कर्म के लिये है। पर एक और बड़ी बात जो हमें इससे प्राप्त होती है, वह यह है कि हम तभी अशांति और असंतोष को छोड़ शांति और संतोषपूर्वक कर्म कर सकेंगे जब हम यह समझ लें कि हमारे भीतर सत्य है। यही हमारा स्वरूप है; हमें केवल इसको व्यक्त करना, सुस्पष्ट कर देना है।

_______