के नाम लेकर अंत में कहा―‘जो हम सब पदार्थों का सूक्ष्म
कारण है वही सबका कारण है, वही सब कुछ है, वही सत्य है;
हे श्वेतकेतु, वह तू है’। फिर उसने अनेक दृष्टांत दिए। कहा―‘हे
श्वेतकेतु, मधुमक्खी अनेक फूलों से रस लाती है। भिन्न भिन्न फूलों
के रस यह नहीं जानते कि वे भिन्न भिन्न वृक्षों और भिन्न भिन्न
फूलों के हैं। इसी प्रकार हम लोग उस सत्ता में पहुँचकर यह
नहीं जानते कि हमने यह किया है। यही सत्य है। यही आत्मा
है। हे श्वेतकेतु वह तू है।’ उसने दूसरा दृष्टांत नदी का दिया।
कहा कि नदियाँ बहकर समुद्र में जाती हैं; और वहाँ वे यह
नहीं जानतीं कि हम भिन्न भिन्न हैं। इसी प्रकार जब हम उस
सत्ता में पहुँचते हैं तब हम यह नहीं जानते कि हम कौन हैं। हे
श्वेतकेतु वह तू है। इसी प्रकार वह उसे शिक्षा देता है।
अब ज्ञान प्राप्त कराने की दो रीतियाँ हैं। एक यह कि विशेष से सामान्य और सामान्य से विश्वव्यापक ज्ञान प्राप्त कराना। दूसरा यह है कि जिले समझाना हो, उसके स्वरूप से ही जहाँ तक संभव हो, समझा देना। अब पहली रीति के अनु- सार हम देखते हैं कि हमारा ज्ञान एक नहीं है, अपितु अनेक है जो ऊँचे से ऊँचा होता गया है। जब कोई एक बात होती है तब हम घबरा जाते हैं। पर जब यह होता है कि वही बात बार बार होती जाती है, तब हमें संतोष हो जाता है और हम उसे नियम कहने लगते हैं। हम जब देखते हैं कि एक सेब डाल से टूटकर गिरा, तब हम चौंक पड़ते हैं। पर जब हम देखते हैं