पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/८

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से अधिक व्यवहार में लाया जा सके। अब हम आगे उसकी कर्मोपयोगिता का निदर्शन करते हैं। पर ये व्याख्यान आधार- रूप हैं, अतः हम पहले सिद्धांत पर विचार करते हैं। तब हमें जान पड़ेगा कि कैसे बन की गुफाओं से लेकर नगरों और गाँवों तक में उसका व्यवहार रहा है। सब से विशेषता की बात तो यह है कि इनमें बहुत से विचार जंगलों से नहीं आए हैं, किंतु ऐसे लोगों से आए हैं जिन का जीवन सब से अधिक झमेले का था, जो राजा या शासक थे।

श्वेतकेतु आरुणि का पुत्र प्रायः त्यागी ही था। वह वन में ही पाला गया था। पर वह पांचाल के नगर में गया और महा- राज जैवलि प्रवाहन की सभा में पहुँचा। राजा ने उससे पूछा― ‘क्या आप जानते हैं कि प्राणी मरने पर कैसे यहाँ से जाते हैं?’ उसने कहा―‘नहीं’। ‘आप जानते हैं कि वे यहाँ कैसे आते हैं?’ उत्तर ‘नहीं महाराज!’ ‘क्या आप पितृयान और देवयान के मार्ग को जानते हैं?’ उत्तर ‘नहीं महाराज!’ फिर राजा ने और प्रश्न किए, पर श्वेतकेतु एक का भी उत्तर न दे सका। फिर राजा ने उससे कहा―‘आप कुछ नहीं जानते’। बालक अपने पिता के पास गया और पिता ने भी यह मान लिया कि वह भी उन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता है। यह बात न थी कि वह बालक को बताना नहीं चाहता था, पर वह सचमुच उन्हें जानता ही न था। अतः श्वेतकेतु अपने पिता के साथ राजा के पास गया और दोनों ने उन रहस्यों को जानने के लिये प्रार्थना