पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/११६

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कर्मयोग
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नहीं, जिनका मन वहाँ से कभी हटता नहीं, जिनके लिये आत्मा ही सब कुछ है, केवल वे कर्म नहीं करते। शेप सबको कर्म करना चाहिये। अपनी इच्छा से बहता हुआ सरित्प्रवाह किसी गह्वर में गिरकर कुछ देर वहाँ चकर लगाया करता है, उसके पश्चात् यह स्वतंत्र हो फिर पूर्व की भाँति बहने लगता है। प्रत्येक मानव- जीवन उसी धारा के समान है। वह इस भँवर-चक्र में पड़ जाती है, इस देश, काल और निमित्त के संसार में बंधन-युक्त हो जाती है, कुछ देर वहाँ चक्कर लगाती है, पिता, माता, नाम, धाम आदि की पुकार उठाती है और अंत में उससे निकलकर पूर्व की भाँति स्वतंत्र हो जाती है। विश्व का यही क्रम है। हम जानें चाहे न जानें, चाहे ज्ञात भाव में हो या अज्ञातभाव में हो, हम सब इस संसार के स्वप्नदेश के बाहर जाने का प्रयत्न कर रहे हैं। मनुष्य का सांसारिक अनुभव उसे उसके बाहर ले जाने के लिये होता है।

परंतु कर्मयोग क्या है? यह कर्म करने के रहस्य का ज्ञान है। हम देखते हैं, समस्त ब्राह्माण्ड कर्म-लग्न है। क्यों? मुक्ति के लिये, स्वतंत्रता के लिये ; जाने किंवा अजाने क्षुद्रतम प्राणी से लेकर उच्चतम तक, सब उसी के लिये प्रयत्नपर हैं ; एक ही उन सबका ध्येय है,--मन, शरीर, आत्मा, सभी के लिये स्वतंत्रता-- लाभ करना । प्रत्येक जीवन परतंत्रता से दूर भागता हुआ खतंत्रता- प्राप्ति के लिये सचेष्ट है। सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, ग्रह-उपग्रह सब पर- तंत्रता से छुटकारा पाने की चेष्टा कर रहे हैं। प्रकृति की सहस्रों