पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/११७

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कर्मयोग
 

हमारी सृष्टि की अन्य शक्तियों के समान हैं। कर्मयोग हमें कर्म का रहस्य, उसे करने को उचित प्रणाली बताता है। संसार में इधर-उधर धक्के खाने के बदले, बहुत देर तक इस चक्र में पीसे जाने के बाद हमें वस्तुओं का ज्ञान हो, इसके बदले कर्म- योग हमें कर्म का रहस्य बताता है, कर्म करने की उचित प्रणाली, कर्म को संगठित करने का ढंग बताता है। शक्ति का विशाल पुत्र थों ही नष्ट हो सकता है, यदि शक्ति का हम समुचित उपयोग न जानें। कर्मयोग कर्म की वैज्ञानिक समीक्षा करता है, उसके द्वारा हम जान सकते हैं, कर्म का सबसे उचित और सुन्दर प्रयोग क्या है, हमें उससे क्या लाभ हो सकता है। संसार के कर्मों को तुम व्यर्थ न जाने दोगे। कर्म करना अनिवार्य है, होना ही चाहिये, परंतु हमें सर्वोच्च ध्येय सामने रखकर कर्म करना चाहिये। कर्म- योग हमें यह मानने के लिये वाध्य करता है कि यह संसार क्षण- भंगुर है; यह वह यंत्रणा-चक्र है जिसमें होकर हमें जाना ही पड़ेगा ; तथा स्वतंत्रता यहाँ नहीं, इसके परे है। इस संसार के बंधनों से मुक्ति पाने के लिये हमें धीरे-धीरे परन्तु सधी चाल से उसके पार होना है। संसार में कुछ ऐसे अपवाद-स्वरूप व्यक्ति हो सकते हैं जो स्वेच्छानुसार संसार से नाता तोड़ सकते हैं, जैसे साँप अपनी केचुल छोड़ देता है। निःसंदेह कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं परन्तु वे बहुत थोड़े हैं; शेष मनुष्यों को कर्म के संसार से हो कर जाना होता है; कर्मयोग हमें मार्ग दिखाता है, जिससे हम सभी संबन्धित व्यक्तियों को सर्वाधिक लाभ पहुँचाते हुये कर्म कर सकें।