पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/१३०

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आठवाँ अध्याय

कर्मयोग का आदर्श

वेदान्त धर्म की महत्ता यह है कि वहाँ भिन्न मार्गों से हम एक ही लक्ष्य को पहुँच सकते हैं। इन मार्गों के मैंने चार नाम मोटी तौर पर रख दिये है, कर्म, मनोविज्ञान, प्रेम तथा ज्ञान के मार्ग । परन्तु आपको यह ध्यान रखना चाहिये ये विभाजन एकदम दूसरों से भिन्न नहीं, इनकी सीमायें कठोरता से निश्चित नहीं, वे आपस में मिल जाती हैं। परन्तु जहाँ जिसकी अधिकता होती है, वैसा ही उसका नाम रख दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि कर्म करनेवाले में कर्म करने के अतिरिक्त अन्य कोई शक्ति न हो, अथवा भक्तों में केवल भक्ति हो और नानियों में ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ न हो। किसी व्यक्ति में जिसका प्राधान्य होता है, उसी के अनुमार उसका नाम रक्खा जाता है। हम देख चुके हैं, अन्त में चारों भार्ग मिलकर एक हो जाते हैं। सभी धर्म, कर्म और उपासना की सभी प्रणालियाँ एक और केवल एक लक्ष्य को पहुंचाती हैं।

मैं उस लक्ष्य की चर्चा कर चुका हूँ। वह स्वतंत्रता है, जैसा कि मैं समझता हूँ। अपने चारों ओर जो कुछ भी हम देखते