पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०
कर्मयोग
 

इसका कोई फल न होगा। संसार-क्षेत्र में कमर कसकर उतर पड़ो और उसके सभी सुखों-दुखों को भोग डालो; उसके बाद त्याग का समय आयेगा, तब तुम्हें शांति मिलेगी। धन, शक्ति, जिसकी भी चाह हो, उसे पहले पूरी कर लो; तब तुम्हें मालूम होगा, वे कितनी क्षुद्र वस्तुएँ थीं। परंतु बिना इन इच्छाओं की पूर्ति के, बिना क्रियाशीलता की समर-भूमि पार किये तुम्हारे लिये संन्यास और त्याग की शांति पाना असंभव है। त्याग और संन्यास के विचारों का शताब्दियों से प्रचार किया गया है; संसार में जो भी पैदा हुआ है, उसने उनके विषय में सुना है, फिर भी हम देखते हैं कि संसार में केवल वे इने-गिने थोड़े ही व्यक्ति हैं, जो उस अखंडशांति की दशा को पहुँचे हैं। मैं नहीं जानता, यदि अपने जीवन में मैने ऐसे बीस आदमी भी देखे हो जो सचमुच शांत और अहिंसा-व्रत का पूर्ण-रूप से पालन करनेवाले हों, और मैं आधी दुनिया का सफ़र कर चुका हूँ।

प्रत्येक मनुष्य को अपना आदर्श निश्चित कर उस तक पहुँचने की चेष्टा करनी चाहिये। दूसरों के आदर्शों की ओर दौड़ने की अपेक्षा, जहाँ तक हम कभी पहुँच नहीं सकते, उन्नति का यह अधिक निश्चयात्मक मार्ग है। जैसे किसी बच्चे से एकदम बीस मील चलने को कहिये; या तो मार्ग में ही उसका अंत हो जायगा अथवा हज़ारों में से कहीं एक लक्ष्य तक अर्द्धमृत जर्जर दशा में पहुँच पायेगा। संसार के साथ भी हमारा कुछ ऐसा ही व्यवहार होता है। किसी समाज के सभी स्त्री-पुरुष