पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/३८

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कर्मयोग
४१
 

हमारे राजा से तय संन्यासी ने, जो उसे वहाँ तक लाया था, कहा--"आयो, इनके पीछे चलें।" वे उनके पीछे चले किन्तु काफ़ी फ़ासले पर। युवा संन्यासी जिसने राजकुमारी से विवाह करना अस्वीकार कर दिया था, बहुत दूर तक चलता रहा। अन्त में एक वन के पास पहुँच उसी में उसने प्रवेश किया। राजकुमारी ने यहाँ भी उसका अनुसरण किया, उसके पीछे वे दोनों भी चले। उस युवा-संन्यासी को वन का पूर्ण परिचय था; उसकी वीथियों-मागों को वह भली भाँति पहचानता था। सहसा इन्हीं में से एक में पड़कर वह अदृश्य हो गया और राजकुमारी उसे न पा सकी। बड़ी देर तक उसे ढूँढ़ने का विफल प्रयत्न कर वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगी, क्योंकि उसे बाहर जाने का रास्ता न मालूम था। तब ये राजा और संन्यासी उसके पास जाकर बोले,--"रोओ नहीं; वन के बाहर जाने का रास्ता हम तुम्हें बता सकते हैं, परन्तु इस समय बहुत अँधेरा हो गया है। इधर एक बड़ा पेड़ है; आओ उसके नीचे रात बितायें। भोर होते हम लोग तुम्हें बाहर निकाल पायेंगे।"

उस वृक्ष पर एक चिड़कुला, उसकी चिड़िया और उनके तीन बच्चे घोंसले में रहते थे। चिड़कुले ने वृक्ष के नीचे तीन मनुष्यों को देख चिड़िया से कहा,--"प्रिये, अब क्या करना चाहिये? घर में कुछ महमान आये हैं; जाड़े के दिन हैं और कुछ ईंधन भी नहीं है।" पस वह उड़ा और अपनी चोंच में चकमक पत्थर उठा लाया और नीचे डाल दिया। उन लोगों ने लकड़ी इकट्ठा