तीसरा अध्याय
कर्म का रहस्य--निःस्वार्थ परोपकार
दूसरों की दैहिक असुविधाओं को दूरकर उनकी सहायता करना बड़ा काम है; परंतु आवश्यकता के अनुसार की गई सहायता अथवा जैसी उसकी क्षमता होती है, बड़ी छोटी होती है। यदि किसी की असुविधायें एक घड़ी के लिये दूर कर दी जायँ, तो वह उपकार अवश्य है, यदि वे वर्ष भर के लिये दूर कर दी जायँ तो वह उपकार और भी बड़ा होगा। यदि वे सदा के लिये दूर की जा सकें तो वह उसका सबसे बड़ा उपकार होगा। केवल आध्यात्मिक ज्ञान हमारे दुखों को सदा के लिये दूर कर सकता है। अन्य सभी ज्ञान हमारी आवश्यकताओं की आल्पकालिक पूर्तिमात्र कर सकते हैं। यदि मनुष्य का चरित्र बदल जाये, तो उसके दुखों का सदा के लिये अन्त हो जाये। अध्यात्म- ज्ञान से ही कामना-प्रवृत्ति नष्ट हो सकती है। इसलिये मनुष्य का आध्यात्मिक उपकार ही उसका सबसे बड़ा उपकार है। जो मनुष्य को अध्यात्म-ज्ञान देता है वह उसका सबसे बड़ा उपकारी है। इसीलिये हम देखते हैं कि सबसे शक्तिशाली वे ही व्यक्ति है जो मनुष्य की आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके हैं।