पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कर्मयोग
५७
 

उस यज्ञ को देख आश्चर्य प्रकट किया; वैसा वैभव, वैसा धन अन्य किसी यज्ञ में उन्होंने देखा ही न था। यज्ञ समाप्त होने पर वहाँ एक छोटा-सा नेवला आया; उसकी आधी देह सुनहली थी, आधी भूरी। वह यज्ञ-भूमि में इधर-उधर लोटने लगा.। तब उसने आस-पास के लोगों से कहा,-"तुम लोग सब झूठ कहते हो। यह भी कोई यज्ञ है? वे बोले,-"क्या कहते हो, तुम्हारे लिये यह यज्ञ ही नहीं?" तुम्हें मालूम नहीं कितने अमूल्य रत्न, कितनी विशाल सम्पत्ति निर्धनों को लुटा दी.गई है, यहाँ तक कि प्रत्येक भिक्षुक भी संपत्तिशाली हो गया है। ऐसा महान् यज्ञ तो आज तक संसार में कहीं हुआ नहीं!" परन्तु नेवले ने कहा,-- "किसी गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था; उसके एक स्त्री, पुत्र और पुत्रवधू साथ रहते थे। शिक्षा और उपदेश देने से लोग उन्हें जो भी थोड़ा-बहुत दे देते थे, वही उनकी जीविका थी। एक बार उस देश में तीन साल तक अकाल पड़ा। बेचारे ब्राह्मण पर सबसे अधिक विपत्ति आई। पाँच दिन हो गये, ब्राह्मण-परिवार में किसी को भी अन्न न मिला, परन्तु छठे दिन ब्राह्मण के घर में कुछ जौ का पिसान आया और प्रत्येक के लिये थोड़ा-थोड़ा उसने उसे चार भागों में बाँट दिया। उन्होंने उसे पकाया, किन्तु जैसे ही भोजन करने बैठे, किसीने द्वार पर कुण्डी खटखटाई। ब्राह्मण ने द्वार खोला, तो वहाँ एक अतिथि खड़ा था। भारतवर्ष में अतिथि की बड़ी महत्ता है; उस काल के लिये वह देवतुल्य है और वैसी ही उसकी आवभगत होनी चाहिये। बेचारे भूखे ब्राह्मण ने कहा,--