पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/६५

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कर्मयोग
 

गया है। यह दुनिया अभी उतनी बुरी नहीं है। संसार में पशु- तुल्य पतियों और उनकी दुश्चरित्रता के विषय में मैंने बहुत कुछ सुना है। पर मेरा अनुभव मुझे यह बताता है कि दुश्चरित्र और पशुतुल्य स्त्रियाँ उतनी ही हैं जितने कि मनुष्य। अमरीका की स्त्रियाँ यदि उतनी ही सुशील और सच्चरित्र होती जितना कि उनके बारंबार अपनी महत्ता के व्याख्यानों से कोई परदेशी उन्हें समझ सकता है, तब मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस देश में एक भी दुश्चरित्र पुरुष न रहता। पुरुष किसके साथ फिर अपना चरित्र बिगाड़ते? ऐसी कौन-सी पशुता है जिस पर पवित्रता और चारित्र्य-बल विजय नहीं पा सकते? एक सुशीला पतिव्रता स्त्री जो पति को छोड़ प्रत्येक इतर पुरुष को अपनी संतान के समान समझती है और सभी पुरुषों के प्रति मातृ-दृष्टि रखती है, पवित्रता में उतनी शक्ति-शाली हों जायगी कि वर्वर-से- बर्बर पुरुष भी उसके पास आ बिना पवित्रता के वायु-मंडल में साँस लिये न रह सकेगा। इसी भाँति प्रत्येक पुरुष को अपनी स्त्री को छोड़ अन्य सभी स्त्रियों की ओर माता, पुत्री अथवा भगिनी की भाँति देखना चाहिये। जो मनुष्य धर्म-शिक्षक होना चाहे, उसे प्रत्येक स्त्री को अपनी माता के समान देखना और उसके प्रति वैसा ही व्यवहार करना चाहिये।

माता का स्थान संसार में सर्वोच्च है और यही हम श्रेष्ठ त्याग का पाठ सीख उसका अभ्यास कर सकते हैं। केवल ईश्वर का प्रेम माँ के प्रेम से बढ़कर है; और सब प्रेम उसके नीचे हैं।