पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/६६

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कर्मयोग
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माँ का कर्तव्य है कि वह पहले अपनी संतान की खबर ले, पीछे अपनी। परंतु इसके बदले जब माता पिता अपना ध्यान पहले रखते हैं, खाने-पीने तक की छोटी-छोटी,बातों में अपने लिये सबसे अच्छा भाग रखते हैं, बचा-खुचा बच्चों के लिये, तो माता-पिता और संतति का संबन्ध वैसा ही हो जाता है जैसा कि चिड़ियों और उनके बच्चों में होता है, जैसे हो उड़ने लगे वैसे ही कौन किसकी माँ और कौन किसका बाप। वह पुरुष धन्य है जो स्त्री को ईश्वर के मातृत्व की प्रतिनिधि के रूप में देख सकता है। वह स्त्री धन्य है जिसके लिये पुरुष ईश्वर के पितृत्व का प्रतिनिधि है। वे संतान धन्य हैं जो अपने माता-पिता को संसार में ईश्वर का अवतार मानते हैं।

उन्नति करने का एक ही मार्ग है, हाथ में जो काम है उसे कर अधिक-से-अधिक शक्तिशाली होते जायें इस प्रकार ऊँचे-से-ऊँचे चढ़ते जायें जब तक कि सर्वोच दशा न आ जाय। किसी भी प्रकार का कर्त्तव्य घृणित नहीं। मैं फिर कहता हूँ, जो मनुष्य छोटा काम करता है वह उस कारण उस व्यक्ति से छोटा नहीं जो बड़ा काम करता है। मनुष्य को महत्ता उसके कर्त्तव्य में नहीं, उसके करने के ढंग में होती है। वह उसे कैसे और किस योग्यता से करता है, उसकी कसौटी है। वह चमार जो कम-से- कम समय में एक सुन्दर मजबूत जूतों का जोड़ा बना सकता है, उस पंडितजी से कहीं भला आदमी है, जो दिनभर इधर-उधर अंट-संट हाँका करते हैं।