पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/६९

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कर्मयोग
 

करे,”–युवक ने सोचा; "क्या इसी आदमी से मुझे शिक्षा पानी है? और कुछ नहीं तो साक्षात् राक्षस है यह।" उसी समय कसाई ने उसकी ओर देखकर कहा,-"स्वामीजी, क्या उस स्त्री ने आपको यहाँ भेजा है? कृपा कर थोड़ी देर बैठ जाइये जब तक मैं अपना काम न समाप्त कर लूं।" संन्यासी ने मन में कहा,-"अब यहाँ यह क्या हो रहा है?" और वह बैठ गया; कसाई अपना काम करता रहा। सौदा बेचकर पैसे ले उसने संन्यासी से कहा,-- आइये, मेरे घर चलिये।" वे दोनों घर गये, और कसाई ने उसे आसन दे कहा,--"तब तक यहाँ बेठिये।" वह भीतर गया जहाँ उसके माता-पिता थे। उसने उन्हें स्नान करा भोजन कराया और हर तरह से उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा की। उसके बाद संन्यासो के सामने आकर वह बैठ गया और बोला,--"अच्छा, देव, आप मुझे देखने आये हैं। आज्ञा दीजिये, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?" तब संन्यासी ने उससे आत्मा और परमात्मा के विषय में कुछ प्रश्न किये जिसपर कसाई ने एक व्याख्यान दिया जो कि आज भी भारतवर्ष में व्याध-गीता के नाम से एक प्रसिद्ध कृति है। वेदान्त में, दर्शन में, वह सर्वोच्च उड़ानों में से एक है। कृष्ण के व्याख्यान भगवद्गीता के विषय में आपने सुना है। जब आप उसे पढ़ लें, तो व्याध-गीता पढ़ें। वेदान्त का उसमें सार निचोड़ कर रक्खा है। जब कसाई कह चुका, तो संन्यासी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा,-"आप यह शरीर क्यों धारण किये हैं? आप इतने ज्ञानी होते हुये भी