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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/७२

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कर्मयोग
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मानने को तैयार नहीं रहते। अपने निकटतम कर्तव्य का, जो अभी हमारे हाथों में है उस कर्तव्य का पालनकर हम अधिक शक्ति-सम्पन्न होते हैं। एक-एक सीढ़ी चढ़कर शक्ति का इस भाँति अर्जन करते हुए हम उस दशा को भी पहुँच सकते हैं, जहाँ समाज और जीवन के सर्वाधिक कांक्षित और श्रद्धास्पद कर्त्तव्य हमें पालन करने को मिलेंगे। होड़ाहोड़ी से ईर्ष्या उत्पन्न होती है और मनुप्य की सहृदयता नष्ट हो जाती है। शिकायत करनेवाले के लिये सभी कर्त्तव्य अनीप्स्य हैं; किसी से भी उसे तोप न होगा और उसका जीवन अवश्य असफल रहेगा। आओ, कर्म करें; जो कुछ भी सामने कर्तव्य आवे, उससे मुँह न मोड़ें; कर्म की गाड़ी में सदा ही कन्धा देने के लिये तैयार रहें। तब हम अवश्य प्रकाश देखेंगे।