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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/७६

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कर्मयोग
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इसलिये विभिन्न धर्मों के उपासना-प्रतीक, मंदिर, संध्या, आरती आदि उनके अनुयायियों के मन में उन विचारों को जाग्रत करते है जिनके कि वे प्रतीक होते हैं। इसलिये प्रतीकवाद, उपासना आदि को बिल्कुल उड़ा देने से काम नहीं चल सकता। इनका अध्ययन और अभ्यास स्वभावत: कर्मयोग के अंतर्गत है।

कम-विज्ञान के और भी पहलू हैं। उनमें से एक शब्द और विचार का पारस्परिक संबन्ध, शब्द-शक्ति के चमत्कार जानना भी है। प्रत्येक धर्म में शब्द की महती शक्ति मानी गई है, यहाँ तक कि कुछ में सृष्टि तक का शब्द से होना कहा गया है। ईश्वर के विचार का बाह्य रूप शब्द है और जैसा ईश्वर ने सृष्टि के पूर्व लोचा और इच्छा की, वैसा शब्द से विश्व उत्पन्न हुआ। आजके भौतिक चांत्रिक जीवन की संघर्षपूर्ण हलचल में हमारी स्नायुओं की ग्राह्यशक्ति मध्यम पड़ गई है और वे ऐंठकर लोहे की पत्तियाँ हो गई हैं। जीवन के जैसे ही और दिन बीतते हैं, दुनियाँ में हम उतने ही अधिक धक्के खाते हैं, हमारी स्नायुएँ उतना ही कठोर होती जाती हैं। हमारे चारों ओर हमारी आँखों के सामने जो घटनायें घटती हैं, हम उन्हें तक नहीं देख पाते । मानव प्रकृति किंतु कभी जब ज़ोर करती है, तो इन साधारण घटनाओं को देख हम आश्चर्य करते और उनके विषय में जिज्ञासा करते हैं। इस प्रकार आश्चर्य करना आध्यात्मिक विकास की पहली सीढ़ी है। शब्द का उच्च धार्मिक और दार्शनिक मूल्य छोड़ हम देख सकते हैं कि ध्वनि-प्रतीक मानव-जीवन के अभिनय में