पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कर्मयोग
८०
 

अपना विशेष स्थान रखते हैं। मैं आप लोगों से बातचीत कर रहा हूँ, आपका स्पर्श नहीं करता। मेरी बातचीत से उत्पन्न वायु के स्पंदन आपके कानों में जा आपको स्नायुओं को स्पर्श करते हैं और आपका मन प्रभावित होता है। आप इससे बच नहीं सकते। इससे अधिक और आश्चर्य-जनक क्या हो सकता है ? एक व्यक्ति दूसरे को मूर्ख कहता है, दूसरा उठकर उसकी नाक पर एक घूँसा जड़ देता है । शब्द की शक्ति देखिये। एक स्त्री दुख से कातर रो रही है, अन्य आकर उससे कुछ मधुर शब्द कहती है; दुखी स्त्री उठकर सीधी खड़ी हो जाती है, दुख जाने कहाँ भाग जाता है और वह मुस्कराने लगती है। शब्दों की शक्ति का विचार कीजिये ! महदर्शन में और वैसे ही साधारण जीवन में उनकी अतुल शक्ति है। दिन और रात हम इस शक्ति का उप- योग करते हैं परंतु उसके विषय में जिज्ञासा नहीं करते। इस शक्ति का पूर्ण ज्ञान और उसका उचित प्रयोग भी कर्म-योग के अंतर्गत है।

दूसरों के प्रति कर्तव्य का अर्थ है, उनका उपकार करना; अर्थात् संसार की भलाई करना। संसार की भलाई हम क्यों करें ? ऊपर से संसार का उपकार करने के लिये, परंतु वास्तव में अपने ही उपकार के लिये। हमें संसार का भरसक उपकार करना चाहिये ; कर्म की वह हमारी सर्वोच्च प्रेरक इच्छा होनी चाहिये ; परंतु जब उसका विश्लेषण करते हैं तब हम देखते हैं कि संसार को हमारे उपकार की दरकार नहीं। यह संसार