पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८५

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कर्मयोग
 

"तुम नहीं जानते ? वही मज़दूर-भवन ( Hall House ) !" उसके मत से मनुष्य के सभी पापों के लिये वह भवन अचूक औषध था । हिन्दुस्तान में कुछ ऐसे अन्धविश्वासी हैं, जिनके विचार में यदि स्त्री को दो-तीन पति रखने का अधिकार दे दिया जाय, तो संसार की सब बुराई दूर हो जाय । यह सब अन्धविश्वास है और बुद्धिमान् उससे दूर रहता है। अंधविश्वासी कभी वास्तविक कर्म नहीं कर सकता। संसार में अन्धविश्वास न हो तो आज की अपेक्षा वह तीव्रतर गति से उन्नति-पथ पर अग्रसर हो । अंधे होकर काम करने से संसार की उन्नति होगी, यह सोचना महा मूर्खता है। उल्टा उससे अवनति होती है क्योंकि अन्धविश्वास से राग-द्वेष जन्मते हैं; मनुष्य असहानु- भूति-पूर्ण हो, एक-दूसरे से लड़ते हैं। हम सोचते हैं, संसार में जो कुछ हमारे पास है, जो कुछ हम करते हैं, वही सबसे अच्छा है; जो हमारे पास नहीं है अथवा जिसे हम करते नहीं, वह तुच्छ है। इसलिये अंधविश्वास जब दिमाग़ में घुसे, तव इस कुत्ते की टेढ़ी पूंछ का स्मरण कीजिये। संसार की भलाई की चिंता में खाना-पीना छोड़ने की आवश्यकता नहीं; तुम्हारे विना भी वह चक्र चलता रहेगा। परमात्मा इस संसार का स्रष्टा और पालक है; सुरा-विरोधी सिगरेट-विरोधी और अनेक प्रकार के विवाह-विरोधियों के होते हुये भी उसकी देख-रेख में यह अपनी गति से चला करेगा। जब तुम अंधविश्वास दूर कर दोगे, तभी तुम उचित रीति से काम कर सकोगे। शान्त प्रकृति हो सोच-समझकर काम करने