पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९०
कर्मयोग
 

उनकी कट्टरता इसलिये है कि उन्हें उससे कुछ प्राप्ति होगी। जब युद्ध समाप्त हो जाता है, तो वे लुट के लिये निकलते हैं। जब कट्टरों का साथ छोड़ बाहर आओगे तब तुम प्रेम और सहानु- भूति करना सीखोगे। सुरापी को अपने समान मनुष्य जान उसके साथ सहानुभूति रखना तुम्हारे लिये सम्भव होगा। तुम्हें उन तमाम परिस्थितियों का ज्ञान होगा जिनसे उसे यह लत पड़ी है और तुम समझोगे कि उसकी जगह शायद तुम होते, तो आत्महत्या कर लेते। मुझे एक स्त्री का स्मरण है जिसका पति बड़ा मद्यपी है और वह मुझसे उसकी शिकायत करती थी। मुझे विश्वास है कि शराबियों को एक बड़ी संख्या का कारण उनको स्त्रियाँ हैं। मेरा काम यहाँ सत्य कहना है न कि किसी की चापलूसी करना । वे अनियंत्रित स्त्रियाँ, जिनके मन से सहनशीलता का शब्द उखाड़कर फेंक दिया गया है, जो स्वतंत्रता के मिथ्या विचारों से प्रेरित यह कहती हैं कि वे पुरुषों को अपने पैरों तले रखना चाहती हैं, और जो पुरुषों के तनिक भी कुछ अप्रिय करने पर चीख-चिल्लाकर धरती सिर पर उठा लेती हैं, ऐसी स्त्रियाँ संसार का अभिशाप हो रही हैं; आश्चर्य यही है कि पुरुषों की आधी संख्या ने गले में फन्दा डाल अभी तक अपनी जान नहीं दे दी। ये स्त्रियाँ कुछ मरमुखे उपदेशकों को अपनी ओर मिला लेती हैं जो उनको हाँ में हाँ मिलाकर कहते हैं, "देवियो, संमार की तुम श्रेष्ठ विभूति हो।" तब ये स्त्रियाँ ऐसे प्रत्येक उपदेशक के विषय में कहती हैं,-"हमारा यही ठीक .