पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/९०

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छठवाँ अध्याय
पूर्ण आत्म-त्याग ही अनासक्ति है।

जिस प्रकार हमारे प्रत्येक कृत-कर्म को प्रतिक्रिया लौटकर हमारे पास आती है, उसी प्रकार हमारे कर्मों की प्रतिक्रिया दूसरों पर और उनके कर्मों की हमारे ऊपर होती है। आप लोगों ने एक बात देनी होगी कि जो बुरे काम करते हैं वे अधिक-से-अधिक बुरे काम करते जाते हैं और जो अच्छे काम करना प्रारम्भ करते हैं, वे अधिकाधिक शक्ति-सम्पन्न हो भलाई करना सीखते हैं। कर्म के प्रभाव के इस तरह घनीभूत होने का एक हो कारण हो सकता है, यह कि हमारे कर्मों की हम लोगों पर पारस्परिक प्रतिक्रिया होती है। विज्ञान से एक उदाहरण लीजिए। जब में कोई काम करता हूँ, तो मेरा मन उसी के अनुसार एक निश्चित सतह पर रहता है। और जितने भी मन उस सतह पर होंगे, मेरी क्रियाओं से प्रभावित हो सकेंगे। किसी कमरे में विभिन्न वाद्य-यंत्र एक ही स्वर पर चढ़ाकर रक्खे जाये, तो आप लोगों ने देखा होगा, एक के छेड़े जाने पर अन्य सब भी वही झंकार देने के लिये स्पंदित-से होने लगेंगे। ऐसे ही इस उदाहरण में यह देखा जा सकता है कि यंत्रों में समान खिंचाव था और एक