पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/८९

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कर्मयोग
 

देखने के लिये जो सचमुच पाप और पापी में भेद कर सकता है मुझसे दुनिया के जिस ओर, जिस कोने चलने को कहिये, मैं चलने को तैयार हूँ। ऐसा कहने में कुछ नहीं लगता। यदि हम वस्तु और उसके गुण में भली भाँति विभेद कर सकें, तो हम पूर्ण हो जायें। ऐसा करना आसान नहीं। और इसके आगे यह कि हमें जितनी ही शांति होगी और हमारा चित्त स्थिर होगा, हम उतना ही प्रेम कर सकेंगे और कर्म उतना ही अच्छा होगा।