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भाइयो के सहायतार्थ भी सुख से स्वार्थ त्याग करते हैं। अस्तु, सब जीवो मे श्रेष्ट मनुष्य को इसी प्रवृत्ति के उत्कर्षसाधन मे-वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव की प्राप्ति के प्रयत्न मे---लगा रहना चाहिए।

यहाँ पर कह देना आवश्यक है कि विकाश सिद्धान्त रूप से विज्ञान की सब शाखाओ मे स्वीकृत हो गया है। पर ये शाखाएँ अपने अन्वेषणो मे निरंतर उन्नति करती जाती है, इससे जिन बातो को पूर्व पीढ़ी के विकाशवादी अपने प्रमाण मे लाए हैं उनके व्योरो मे इधर बहुत कुछ फेरफार हुआ है। बहुत से भौतिक विज्ञानियो ने परमाणु के भी अवयव या विद्युदणुओ तक पहुँच कर यह कहना आरंभ कर दिया है कि द्रव्य वास्तव में विद्युत् का ही सघात विशेष है, विद्युच्छक्ति का ही एक रूप है। इस बात को मानलें तो द्रव्य और शक्ति का द्वद् तो मिट गया। द्रव्य शक्ति की ही एक विशेष अभिव्यक्ति या रूप ठहरा। यदि सब कुछ शक्ति ही है तो बाकी क्या बचा? बाकी बचा ईथर ( आकाश द्रव्य ) जिसके विषय मे हम अभी तक बहुत कम बाते जान सके है। इस प्रकार 'ईथर और शक्ति' पर आकर अब विज्ञान अड़ा है।

ईथर,है किस प्रकार का, इसे समझने के लिये वैज्ञानिक बुद्धि लड़ा रहे हैं। पृथ्वी जो ईथर के बीच घूमती है तो क्या सचमुच उसे चीरती हुई घूमती है। यदि चीरती हुई घूमती है तो इस रगड़ का परिणाम बड़ा भारी होगा। चलती हुई वस्तु यदि बराबर रगड़ खाती हुई जायगी तो उसका वेग