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फेक्नर के ये भौतिक निरूपण सर्वांश में स्वीकृत नही हुए है। मनोभूत-विज्ञान से जैसी सफलता की आशा की गई थी वैसी नहीं हुई। वह आगे नहीं बढ़ सका। उसका विस्तार बहुत ही थोड़ा है। उससे इतना अवश्य सिद्ध हुआ है कि कम से कम आत्मा के एक व्यापार पर भौतिक नियम घटाए जा सकते हैं। पर कहना यही पड़ता है कि मनोव्यापारी को नापने तौलने का प्रयत्न निष्फल हुआ है, उससे कुछ विशेष परिणाम नहीं निकला है। विज्ञान का लक्ष्य तो यही होना चाहिए कि सर्वत्र भौतिक नियमो का परिपालन दिखलाया जाय, पर यह सर्वत्र साध्य नही है। अतः जीवसृष्टि, मनोव्यापार आदि के संबध में तारतम्यिक


हमे एक विशेष अतर जान पड़ा। अब यदि एक दरजे के स्थान पर २ दरजे का प्रकाश पहले पड़े तो फिर २०० दरजे का प्रकाश पडने से, अर्थात् दो का सौ गुना प्रकाश पड़ने से, उतना ही अतर जान पडेगा। इसी प्रकार ३ और ३०० मे वही अतर जान पड़ेगा। तात्पर्य्य यह कि पहली उत्तेजना जितनी गुनी अधिक होगी दूसरी के भी उतनी ही गुनी अधिक होने से उतना ही अंतर जान पडेगा। १५ रत्ती का बोझ यदि हाथ पर ( हाथ स्थिर और किसी वस्तु के आधार पर रहे) रक्खा जाय तो फिर उस पर एक रत्ती और रखने से बोझ मे कुछ अतर न जान पडेगा। जब पॉच रत्ती और रक्खा जायेगा तब जान पड़ेगा। अब यदि पहले ३० रत्ती का बोझ रक्खा जाय तो फिर पॉच रत्ती और रखने से अंतर न जान पडेगा, दस रत्ती और रखने से जान पड़ेगा। गुरुत्व और शब्द-सवेदना में ३-४ का अतर पड़ने से भेद मालूम होता है, पेशी के तनाव में १५-१६, दृष्टि मे १००-१०१ का।