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आदिम जंतु जो सृष्टि के बीच उत्पन्न हुए वे एकघटक थे। आज भी इस प्रकार के एकघटक जंतु और एकघटक वनस्पति पाए जाते हैं। जल के ये वनस्पति अत्यंत सूक्ष्म होते है, कोई कोई तो एक इंच के कई लाखवे हिस्से के बराबर होते हैं।

जल मे रहनेवाले रोईदार सूक्ष्म अणुजीवो मे उन्नत कोटि की घटकात्मा देखी जाती है। उनकी गतिविधि का यदि हम अनेकघटक प्राणियो की गतिविधि से मिलान करे तो बहुत कम अंतर मिलेगा। इन एकघटक अणुजीवो मे जो संवेदनग्राही और गतिसंपादक करणांकुर होते है वे वही काम करते है जो उन्नत जंतुओ का मस्तिष्क करता है। इन सूक्ष्म अणुजीवो का मनोव्यापार किस प्रकार का होता है इस विषय मे कुछ मतभेद है। कुछ वैज्ञानिको का कहना है कि इनमे जो स्वतः प्रवृत्ति होती है वह जड़ या उद्वेगात्मक (कललरस के स्वाभाविक क्षोभ से उत्पन्न) होती है और जो विषयोत्तेजित गति देखी जाती है वह प्रतिक्रिया मात्र होती है। इसके विरुद्ध कुछ लोगों का कहना है कि इनके ये व्यापार कुछ कुछ झानकृत होते है अर्थात् इनमे थोड़ी बहुत चेतना का विकाश होता है। पर अधिकांश लोग इनमे चेतना या ज्ञान नही मानते। जो कुछ हो, हमारा प्रयोजन इतने ही से है कि इनमे एक प्रकार का समुन्नत मनस्तत्त्व या आत्मतत्त्व होता है।

(२) समूहबद्ध आत्मा--वर्गानुक्रमगत आत्मविकाश की यह द्वितीयावस्था है। मनुष्य तथा और दूसरे अनेकघटक प्राणियों की गर्भवृद्धि एक सुक्ष्म घटक के विभाग द्वारा आरंभ