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द्वारा, परिपक्व होती है। बीस वर्ष की अवस्था के उपरांत तीस वर्ष की अवस्था के भीतर ही भीतर उसके विचार परिपक्व हो जाते हैं और साठ वर्ष की अवस्था तक पूरा काम देते हैं। साठ वर्ष की अवस्था के उपरांत जरावस्था के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं, धीरे धीरे मानसिक शक्तियों का हास होने लगता है, स्मरणशक्ति, ग्रहणशक्ति, विशेष विशेष वस्तुओ की। और प्रवृत्ति क्षीण होने लगती है—हां, उद्भावना की शक्ति, चेतना की परिपक्वता और दार्शनिक सिद्धांत-तत्त्वो की ओर, अभिरुचि कुछ दिनो तक और बनी रहती है।

मनुष्य ने चेतना की जो उच्च अवस्था प्राप्त की है वह भी क्रम क्रम करके। ज्यों ज्यों सभ्यता बढ़ती गई त्यो त्यों उसकी चेतना भी उन्नत होती गई। यह बात जंगली जातियो की ओर ध्यान देने से, उनकी भाषाओ का मिलान करने से, स्पष्ट हो जाती है। भावग्रहण की शक्ति ज्यो ज्यो मनुष्यो मे बढ़ती जाती है त्यो त्यो वे सामने आनेवाले अनेकानेक विशेष पदार्थों के बीच सामान्य लक्षणो को ढ़ूँढ़ निकालने और उन्हे सामान्य प्रत्ययो (भावनाओं) के रूप मे ग्रहण करने मे समर्थ होते जाते है। इस प्रकार उनकी चेतना गूढ़ होती जाती है * ।


  • जैस गाय, भैस, बकरी, हिरन, इत्यादि बहुत से विशेष जानवरों को देख मनुष्य सींग को सामान्य लक्षण प कर 'सीगवाले जतु' की एक सामान्य भावना धारण करता है।

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