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की उत्पत्ति के संबंध में विकाशसिद्धांत बहुत से प्रत्यक्ष प्रमाणो से पुष्ट कर के प्रकाशित किया उस समय बहुत से लोग विशेंषतः पादरी लोग उसके विरोध में खड़े हुए। पर साथ ही बहुत से वैज्ञानिक नए नए प्रमाणो द्वारा उसे पुष्ट करने मे तत्पर हुए। जरसनी के जगत्प्रसिद्ध प्राणिविद्या विशारद अध्यापक हैकल इनमे मुख्य थे। उन्होने सन् १८६६ मे, अर्थात् डारविन की पुस्तक प्रकाशित होने के ६ वर्ष पीछे, 'प्राणियों की शरीररचना' नामक एक बहुत बड़ा ग्रंथ प्रकाशित किया जिसमे अनेक नए नए अनुसंधानो के आधार पर यह अच्छी तरह दिखाया गया है कि इस पृथ्वी पर क्रम क्रम से एक ढाँचे के जीव से दूसर ढॉचे के जीव लाखो वर्ष की मृदु परिवर्तन-परपरा के प्रभाव से बराबर उत्पन्न होते आए है। हैकल ने सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणुजीवों से ले कर मनुष्य तक आनेवाली श्रृंखला ही उत्पत्तिक्रम से दिखा कर सतोष नहीं किया बल्कि विकाश को विश्वव्यापक नियम निश्चित करके निर्जीव, सजीव, जड़, चेतन सभी व्यापारो को उसके अंतर्गत बताया। अब आजकल तो प्रत्येक विभाग के वैज्ञानिक अपने अपने विषय का निरूपण विकाशक्रम के अनुसार ही करते है।

इस पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति किस प्रकार हुई यह ऊपर कहा जा चुका है। जल ही में जीवनतत्त्व की उत्पत्ति हुई। जल ही में उस सजीव या सेद्रिय * द्रव्य का प्रादुर्भाव हुआ जिसे


* सेन्द्रिय चैतनं द्रब्य निरिन्द्रियमचैतनम्।---चरक।