पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७१ )


शरीर मे होते हैं। आगे चल कर जो उनसे उन्नत कोटि के जीव हुए उनमे नर और मादा अलग अलग हुए। नर मे पुं० घटक और मादा में स्त्री घटक रहते हैं। पुरुष के शुक्रकीटाणु और स्त्री के रजःकीटाणु इसी प्रकार के घटक है। शुक्रकीटाणु अत्यंत सूक्ष्म होते है। एक बूँद वीर्य मे लाखों होते है। ये पुछल्लेदार होते है। रजःकीटाणु इनसे बड़े होते है अर्थात् एक इंच के १२५ वे भाग के बराबर होते हैं। समुद्र में पाए जाने वाले पुछल्लेदार अणुजीवों का पहले वर्णन हो चुका है जो तरुणावस्था प्राप्त होने पर दो भिन्न प्रकार के पिडो में विभक्त हो जाते है एक पुं० कीटाणुचक्र और दूसरा गर्भाड। पुं० कीटाणु चक्र का प्रत्येक पुछल्लेदार कीटमनुष्य, कुत्ते, बिल्ली आदि के शुक्रकीटाणु से मिलता जुलता होता है। गर्भाड जल में छूट कर उसी प्रकार अचल रहता है जिस प्रकार प्राणियो के गर्भ के भीतर का रजःकीट या गर्भाड। जल के भीतर किस प्रकार कीटाणुचक्र के कीट और गर्भांड का संयोग होता है यह पहले दिखाया जा चुका है। बहुत से कीट जल में अपने पुछल्लो को लहराते हुए गर्भाड को जा घेरते है जिनमे से कोई एक गर्भांड के भीतर प्रवेश कर जाता है। यही गर्भांड का गर्भित होना कहा जाता है। जैसा संयोग उक्त अणुजीवो से बाहर होता है ठीक वैसा ही मनुष्य आदि प्राणियो में गर्भाशय के भीतर होता है। मनुष्य के ही गर्भ को लीजिए।

गर्भाशय के भीतर जब शुक्रकीटाणुगर्भाड मे प्रवेश कर जाता है तब दोनों मिलकर एक घटक हो जाते है जिसे अंकुरघटक कहते हैं। यह कललरसपूर्ण एक सूक्ष्म कणिका मात्र (एक