पृष्ठ:वीरेंदर भाटिया चयनित कविताएँ.pdf/४०

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वाह वाह करती रहेगी
किसी दिन फिर
देखेगा हाकिम
कि बदलने लगा है हवाओं का अनुकूलन
बंगले के पंछियों में बेचैनी है
परजीवीयों में घबराहट है,
वह गहरे रंग के पर्दे हटाएगा
बाहर झांकेगा
देखेगा
तल्ख हवाएं अब जलने लगी हैं

वह खबरनवीसों को ढूंढेगा
अखबार सब जल रहे होंगे
आग में आग बन रहे होंगे
भाग रहे होंगे सब खरीदे हुए खबरनवीस
सियार पिट रहे होंगे
मठाधीश मठों में बैठ
मौनव्रत धारण कर लेने की
अपनी अभिनय क्षमता का परीक्षण कर रहे होंगे
मजमे उलट दिए जाएंगे सब
सफेदपोश हवाओं का रुख देख
पाला बदलने की रणनीति में मश्गूल होंगे

हाकिम बन्द्‌ कमरों में चिल्लायेगा
तेज कर देगा ए सी की ठंडक
बार बार पेशानी से पसीना पोछेगा

हवाओ से फैलती आग किसी भी पल
हाकिम के गुरूर को राख कर देगी

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 40