[ वेद और उनका साहित्या (१४) माधव विदेघ उस समय मम्वती नदी पर था। वहां से वह (अग्नि) इस पृषी को वनारे हुए पूर्व की योर बदी ओर ज्यों ज्यों यह जलाती हुई बदती जानी थी न्यो त्यो गौतम राहू गए और विध माधव उसके पीछे पीछे ले जाते थे। उसने इन सब नदियों को जला डाला (सुम्बा डाला)। थब वह नदी जो सदानीर (गंडक) कहलाती है उत्तरी (हिमालय) पवन में बहता है। इस नदी को उसने नहीं जलाया। पूर्व काल में बामणो ने इस नदी को यही सोच घर पार नही किया, क्योंकि अनि वैश्वानर में उसे नहीं जलाया था। (११) परन्तु इस समय उसके पूर्व में बहुत से ब्राहाण हैं । उस समय उस ( सदानीर) के पूर्व की भूमि बहुत करके लोती बोई नहीं जाती थी थौर बडी दल दली थी क्योंकि अग्नि वैश्वानर ने उसे नहीं चरखा था। (१६) परन्तु इस समय वह बहुत बोई हुई है क्योंकि माह्मणों ने उसमे होमादि करके उसे अग्नि से चखवाया है। अभी भी गरमी में बह नदी उमड उठती है। वह इतनी ठंडी है क्योंकि अति और वैश्वानर ने उसे नहीं बलाया (१७) माधव विदेघ ने तब अनि से पूछा कि मैं कहाँ रहूँ ? उसने उत्तर दिया कि तेरा निवास इस नदी के पूर्व में हो। अब तक भी यह नदी कौशलों और विदेहों की सीमा है क्योकि ये माधर की संतति है। (शतपथ ब्राह्मण १-४-१) ऊपर के बाक्यों में हम लोगों को कहिएन क्या के रूप में अधिवा- सियों के सरस्वती के सट से गंडक तक धीरे-धीरे बदने का वृत्तान्त मिलता है। यह नदी दोनों राज्यों की सीमा थीं । कोशल लोग उसके पश्चिम में रहते थे और विदेह लोग उसके पूरब 1
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