१15 [चेद और उनका साहित्य AR - - निधापन किया इसी लिये कुरु, पाँचालों तथा वमों और उमीनरों के राजाओं को राज्यत्तिलक दिया जाता है और चे राजा कहलाते हैं।" वास्तव में शुक्ल यजुर्वेद की बाजपने पी शाबा ने ही यज्ञों का बड़ा भारी प्रचार किया जो इन पूर्व के देशों में बहुत बढ़ गया था । शतपत्र ब्राह्मण में अध्वयु की गलतियों बार बार निमाली गई है, जो चरक शाग्वा का पुरोहित होता है। कृष्ण यजुबैद की तीन शाखामों-कठ, कपि- एल और मैत्रायणीय-को चरक शाखा कहते हैं । शतपथ ब्राह्मण में अहंत, श्रम ए और प्रतिबुद्ध शब्द आते हैं । पियों की दशावलियों में गौतम का नाम विशेष रूप से याता है। साँप दर्शन के प्रारम्भिक सिद्वान्तों का भी का वर्णन मिन्नना है, और साँस्य के प्रसिद्ध याचार्य श्रामुरी का नाम तो कई एक स्थानों पर याता है। कुरु राज जनमज्य का धणन यहाँ पहले पहल ही पाता है। पार इवों का वर्णन कुछ न होते हुए भी अर्जुन का वर्णन किया गया है विदेह राज जनक तो इसके मुख्य थाश्रयदाता है, किन्तु विदेह की गद्दी के सभी राजाओ का नाम जनक होने से यह निधय करना कठिन है कि यह जनक सीता के पिना ही थे। अवश्य ही ये जनक कोई महाभारत कालीन जनक रहे होंगे। कालिदास के नाटकों के दोनों कथानक भी इसमें मिलते हैं। पुरुरेखा और उर्वशी के प्रेम और वियोग की कथा, जिसका ऋग्वेद में रूपक मिल गया है, यहाँ विस्तृत रूप में वर्णन की गई है। दुग्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत का वर्णन भी इसमे किया गया है, जिनके उद्धरण इमो अध्याय में नागे बताये गये हैं। जल प्रलय की उस प्रसिद्ध कथा का भी इसमें वर्णन है जिसका कुछ वर्णन अथर्ववेद में है और जिसका महाभारत, जिंद अवस्ता तथा वाइबिल में वर्णन किया गया है। इसमें बतलाया गया है कि किस प्रकार मनु को एक छोटी सी मछली मिल गई, जिसने अपनी । मागमा
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