१२ [द और उनका साहित्य किया गया है। इस सूर कायोर बाझगों को सम्पन्ध्र उलटा हो गया है। क्योकि सुशे का प्राधार मात्र होने के स्थान में यहा ब्राह्मण का आधार मुर हो गया है । इसका दो तिहाई प्राचीन अन्यों से लिया गया है। ऐतरेय योर कोशेनकि मानणों के विषय को मुख्य रूप से लिया गया है। मैत्रायणी श्री लेतरोय संहितानों के भी कुछ अंश लिये गये हैं। घोड़े से अंश शतपथ और पंचविंश हाए से भी लिये गये हैं। श्रर यह देखना है कि नाम की कुल संख्या कितनी है। ग्रासपा की कुल संख्या ५ है। जिनमें १५ प्रकाशित हो चुके हैं। दो प्रका- शित है। परन्तु प्राप्त होते हैं । १८ ब्राह्मए ऐसे हैं जिनका साहिय में पता चलता है, परन्तु प्रास नही हैं। ये १८ अमाप्त बाण इस प्रकार - (.) चाक माहाश ( यजुर्वेदौर ) विरूपाचार्य कृत बालक्रीडा दीका में उत, माग प्रथम पू०४८,८०) भाग द्वितीय पृ.८६, भाग २ पृ. ७ पर लिखा है- 'तथा अग्निोमीय बामणे चरकाणाम्' यह साजुषु चरक शाखा का प्रधान दाहाण था। इसके बारगयक का एक प्राचीन हस्त लेख लाहोर पुस्तकालय में है। यह थधिकाश में सा पपामक गैपनिषद् से मिलता है। (३) श्वेतातर मामा--( यदीय) बालकीड़ा टीश भाग १, पृ. ८ पर उन श्वेताश्वतरोपनिषद् इसी के सारएरक का भाग प्रतीत होता है। (३) कारक मामण (गजुरंदीय) तैत्तिरीय ब्राह्मण अन्तिम भागों को भी कहा 'ठक प्राण कहते हैं, परन्तु यह काठक ब्राह्मण उससे भिन्न हैं। यह घरकों के द्वादश अवान्तर विभागों में से एक है। इसके बारएपक का कुछ हस्त लिखित
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