पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१२३

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छठा अध्याय ] १२१ रूप में यूरोप के पुस्तकालयों में विद्यमान है। श्रीनगर काश्मीर के एक ब्राह्मण का कहना है कि इसका हस्तलेख मिल सकता है। एफ. प्रो. श्रेडर सम्पादित “माइनर उपनिषदस्” प्रथम भाग पृ० ३१.४२ तक जो कठश्रुत्युपनिषत् छपा है, इसी ब्राह्मण का कोई अन्तिम भाग अथवा खिल प्रतीत होता है। इसके वचनों को यतिधर्मसंग्रह में विश्वेश्वर सरस्वती, यानन्दाश्रम पूना के संस्करण (सन १९०९) के पृ० २२ पं. २६ पृ. ७६ पं०६ श्रादि पर काठक ब्राह्मण के नाम से भी उत्त करता है (४) मैत्रायणो ब्राह्मण-( यजुर्वेदीय ) बौधायन श्रौतसूत्र ३०, में उत । नासिक के वृद्ध से वृद्ध मैत्रायणी शाखा के अध्येत ब्राह्मणों ने कहा था कि उन्हें इसके अस्तित्व का कोई ज्ञान नहीं रहा । उनके कथनानुसार उनकी संहिता में ही ब्राह्मण सम्मिलित है, परन्तु पूर्वोक्त बौधायन श्रौतसूत्र का प्रमाण मुद्रित ग्रन्थ में नहीं मिला, इसलिए ब्राह्मण प्रथक हो रहा होगा । मैत्रायणी उपनिषद् का अस्तित्व भी इस ब्राह्मण का होना बता रहा है, फिर भी पूरा निर्णय होने के लिये मैत्रायणीय संहिता का पुनः छपना आवश्यक है। बडौदा के सूचीपत्र (सन् १६२५) सं. ७६ में कहा गया है कि उनका हस्तलेख, मुद्रित मै. सं. से कुछ भिन्न है। वालक्रीड़ा भात २ पृ० २७ पं० ३ पर एक श्रुत्ति उद्धत है, उसी श्रुति को विश्वेश्वर यविधर्म संग्रह पृ० ७६ पर मैत्रायणी श्रुति के नाम से उद्भत करता है, (५) भाल्लचि ब्राह्मण, बृहद्देवता १. २३, भाषिक सूत्र ३ १५. नारद शिक्षा १. १३ महाभाध्य ४. २. १०४. में इसका मत व नामका उल्लेख है। -