सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२८ (वेद और उनका साहित्य हुया था। देवराति जनक वही या उससे कुछ ही पूर्वकालीन हो सकता है, क्योंकि महाभारत में इसी प्रकरण की समाप्ति पर भीम कहते हैं कि याज्ञवल्क्य और देवराति जनक के सम्बाद का तथ्य उन्होंने स्वयं देव- राति जनक से प्राप्त किया था, भीष्म उवाच-- एतन्मयाऽस जनकात् पुरस्तात् तेनापि चाप्तं नृप याज्ञवल्क्ष्यात् . ज्ञातं विशिष्टं न तथा हि यज्ञा ज्ञानेन दुर्ग तरते न यज्ञैः ॥१०॥ शान्तिपर्व अध्याय ३२३ शान्तिपर्व के उपदेश के समय भीमजी की थायु २०० वर्ष से कुछ कम ही थी। इस गणनानुसार दैवराति जनक महामारत-युद्ध से ११० वर्ष के अन्दर अन्दर ही हो सकते है । श्रतएव शतपथ Pाह्मण भी महा- भारत काल में ही 'प्रोक्त' हुना समझना चाहिए । (४) शतपथ ब्राह्मण और उनका प्रवचनकर्ता याज्ञवल्क्य महाभारत कालीन ही है इसकी शतपथ ब्राह्मण भी माक्षी देता है, यथा--- - श्रथ पृषदाज्यं तदुह घरकाध्वर्यवः पृपदाज्यमेवाग्रेऽभि-- धारयन्ति प्राण' पृषदाज्यमिति वदन्तस्तदुह पाज्ञवल्लयं चरका- ध्वयु दनुच्याजहार। शतपथ ।८।२।२४ ताउह चरका', नानैव मन्त्राभ्यां जुह्नति प्राणोदानी याऽस्यैतो नानावीयौ प्राणोदानी कुर्म इति वदन्तम्तदु तथा ने कुर्यात शतपथ ४।१।२ । १६