दा अध्याय ] १२७ .. अर्थात् ये सब बड़े बड़े ऋषि महाराज युधिष्ठिर की सभा को सुशो- भित कर रहे थे। शतपथ ब्राह्मण याज्ञवल्क्य प्रोक्त है, इस विषय में काशिकावृत्ति ४१ ३ १ १०५ में लिखा है- ब्राह्मणेपु तावत्-भाल्लविनः, शाय्यायनिनः ऐतरेयिणः, "पुराणप्रोत्तेविति किम्, याज्ञवल्क्यानि ब्राह्मणनि' याज्ञवल्क्यादयोऽचिरकाला इत्योख्यानेषुवार्ता, जयादित्य का यह लेख महाभाष्य के विरुद्ध है । लयादित्य के संदेह का कारण कोई प्राचीन 'श्राण्यान' है, परंतु उससे जयादित्य का अभिप्राय नहीं सिद्ध होता । ब्राह्मण-ग्रंथों के अवान्तर भागों को भी बाह्मण कहते हैं । शतपथ ब्राह्मण के अनेक अवान्तर ब्राह्मण अत्यंत प्राचीन हैं । उनकी अपेक्षा याज्ञवल्ल्य प्रोक्त ब्राह्मण नवीन है। धाख्या- नान्तर्गत लेख का अभिप्राय समग्र शतपथ ब्राह्मण से नहीं प्रत्युत उसके श्रवान्तर ब्राह्मणों से है । शतपथ ब्राह्मण का प्रवचन तो तभी हुआ था जब कि भालवि, शायणायन और ऐतरेय आदि बाह्मणों का प्रवचन हुत्रा था। इनमें से ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन कर्ता महिदास, सुमन्तु आदि से कुछ प्राचीन है. देखिये श्राश्वलायन गृह्यसूत्र ३ । ४ । ४ । याज्ञवाल्ल्य इन्हीं का सहकारी है, अतः याज्ञवल्क्य और तमोक्त शतपथ ब्राह्मण भी महाभारत-कालीन हो हैं । यहाँ यह संदेह नहीं किया जा सकता कि महाभारत शान्तिपर्व अध्याय ३१५ श्लोक ३, ४ तथा अध्याय ३२३ के श्लोक २२-२३ के अनुसार याज्ञवल्क्य का सम्बाद देवराति जनक से हुआ था, लो कि वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग ७१ श्लोक ६ के अनुसार सीता के पिता हैं। क्योंकि देवराति जनक अनेक हो सकते हैं। महाभारत काल में भी एक प्रसिद्ध जनक था, और उसी का वैयासकि शुक के साथ संवाद
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